त्तराखंड के जौनपुर रेंज में वार्षिक मौण मेले की शुरुआत हो गई. इस मेले का आयोजन कोरोना महामारी के कारण दो साल के बाद किया गया है.
इस ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था. तब से जौनपुर में हर साल इस मेले का आयोजन किया जा रहा है.
उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर ‘मौण मेला’ कोरोना संकट (Corona) के कारण दो साल के बाद आयोजित किया गया है. मौण मेले को लेकर ग्रामीणों में खासा उत्साह है. ग्रामीण यहां मछलियों को पकड़न के लिए अगलाड़ नदी में उतरे हैं. जून के अंतिम सप्ताह में मछली मारने के लिए ‘मौण मेला’ मनाया जाता है. हजारों की संख्या में ग्रामीण मछली पकड़ने के अपने पारंपरिक औजारों के साथ नदी में उतरे. इनमें बच्चे, युवा और बुजुर्ग भी शामिल रहते हैं.
मेले में सैकड़ों किलो मछलियां पकड़ी जाती है जिसे ग्रामीण प्रसाद स्वरूप घर ले जाते हैं. घर में बनाकर मेहमानों को परोसते हैं. वहीं मेले में पारंपरिक लोक नृत्य भी किया जाता है. इसमें मेले में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं. यह भारत का अलग अनूठा मेला है जिसका उद्देश्य नदी और पर्यावरण का संरक्षण करना होता है. इसका उद्देश्य नदी की सफाई करना होता है ताकि मछलियों को प्रजनन के लिए साफ पानी मिले.