हमारा पहाड़- हरा भरा आँचल
‘स्पर्श समिति’ नामक संस्था, गत दशक से सामाजिक कार्यों में संलग्न है। श्री गोविंद मिश्र जैसे ख्याति प्राप्त व्यक्ति इस संस्था के संस्थापक सदस्य हैं तथा श्री हीरा बल्लभ इसके प्रेरणास्रोत हैं। संस्था ने उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण पर जागरूकता अभियान चलाया है।
हमारे धर्म ग्रंथों में आया है कि स्वयं द्वारा रोपे वृक्ष संतति की भांति हैं, जो लोक- परलोक में तारते हैं। अतः यह एक अर्पण व तर्पण है। पौध रोपण एक दान है (गरुड़ पुराण)।
हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण अति महत्वपूर्ण विषय है। वनों का क्षरण उपनिवेशी काल से प्रारंभ होता है जिसका परिणाम आज जल संकट, भूमि कटाव, बाढ़, भू स्खलन, खाद्य संकट आदि रूप में सामने आ रहा है। वनों के विनाश से जंगली कन्द मूल भी लुप्त हो गए हैं जिसके चलते वन्य पशु आज हमारी फसलों पर निर्भर हैं ।
ज्ञातव्य है कि पहाड़ों में सुखी जीवन हेतु गाँवों में हरियाली तथा गाँवों के चारों ओर घने बनों का होना नितांत आवश्यक है। अतः सुदृढ़ अर्थव्यवस्था, स्वच्छ हवा, जीव-जंतुओं के पोषण तथा हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण एवं संकटों से बचने हेतु हमें पहाड़ों को सघन हरित क्षेत्र में परिवर्तित करना होगा। हमारे वन व चारागाह हमारी संपदा हैं।
सम्पूर्ण विश्व आज ग्लोबल वार्मिंग जैसे भयावह संकट में है। हिमालयी ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे उत्तर भारत की सदाबहार नदियों के सूखने का खतरा सम्मुख है। इन सब गंभीर परिणामों के मध्यनजर ‘स्पर्श समिति’ नामक नॉन प्रॉफिट , जन-कल्याण को समर्पित संस्था ने, पहाडों में, स्थानीय जनों द्वारा स्थानीय निवासियों हेतु, पौधरोपण करने के लिए जागरूपता अभियान चलाया है। कि अभी से हम सब , स्वयं ही पौधरोपण करना प्रारंभ कर दें और इसे आजीवन एक लक्ष्य बनाएं। पौधरोपण एक सतत जन आंदोलन बने।
🌻सभी जनों से अनुरोध है कि अभी से स्वयं ही पौधरोपण प्रारम्भ कर दें और इसे आजीवन एक लक्ष्य बनाए।🌻
उपरोक्त लक्ष्य हेतु एक संस्थागत ढांचा बनाना है। अतः आपसे आग्रह है कि आस-पड़ोस के कुछ गांववासी मिलकर एक ‘हरित संकल्प’ या ‘ग्रीन रेजोल्यूसन’ नामक संस्था बनाएं, जो NGO की भांति बने। इसप्रकार ऐसी हज़ारों संस्थाएं उत्तराखंड में बनेंगी। कालांतर में स्थानीय जनों द्वारा स्वेच्छिक अनुदान से इसके लिए एक ‘ग्रीन फण्ड’ स्थापित करना होगा जिसका कि बैंक एकाउंट भी हो, जिसमें कोई बाह्य व्यक्ति या संस्था भी योगदान दे सके। यह कार्य योजना निश्चित ही ग्रामीण सशक्तिकरण, उत्थान व सहकारिता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसी फण्ड से नर्सरी आदि भी बनेंगी और इन पौधों को देश-काल व स्थान के अनुरूप, एक संकल्प के रूप में, ऊसर भूमि व वनस्पति हीन पहाड़ियों में रोपा जाएगा ।
सावन माह के पहिले दिन में आयोजित , कुमाऊं का हरेला त्यौहार वसुंधरा को हरा-भरा करने के उत्तम अवसर के रूप में मनाया जाता है, जिसके बाद आनेवाली वर्षा ऋतु इन पौघों को पोषित व पल्लवित करती है। पुराणों में आया है कि सावन की ‘हरियाली अमावस्या’ पर वृक्षा रोपड़ करने से पितृ दोष व ग्रह दोष समाप्त होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। विविध पौधे ऋतु अनुसार भी लगाये जा सकते हैं, किंतु वर्षा ऋतु में लगाए गए पौधे त्वरित बड़े हो जाते हैं तथा उन्हें देखभाल की आवश्यकता भी कम रहती है। प्रयत्न यह हो कि प्रत्येक व्यक्ति हरएक वर्षा ऋतु के चार महीनों में 5 पेड़ लगाए व उन्हें पल्लवित होते देखे। यही इस ‘हर्याव अभियान’ का लक्ष्य भी है।
मिट्टी, पानी, ऊंचाई, सतह, ढलान, धूप आदि का ध्यान रखते हुए स्थानीय प्रजाति के बांज, बुरास, काफल , जामुन, देवदार, अंयार, बंमोर,अखरोट, तिमिल, पीपल, आंवला आदि को प्राथमिकता मिले। इस मुहिम में पेड़ों की आर्थिक उपियोगिता का भी ध्यान रखा जाएगा। छायादार, औषधियुक्त, फल-दार वृक्ष्य चुनें जाएं जो मानव के साथ पशु-पक्षयों हेतु भी उपयोगी हों । कम जल तथा लंबी आयु वाले पेड़ों को प्राथमिकता मिले। बांझ, बुरांस आदि उत्तराखंड के ऐसे पौधे हैं जो भूमि को अपनी विशाल जड़ों से पकड़कर भू स्खलन व कटाव से बचाते हैं तथा जल संचय करते हैं। आंचलिक जन इस बात भी गूढ़ समझ रखते हैं। वृक्ष रोपण एक वैज्ञानिक व सूझबूझ का विषय है, जिसे स्थानीय जन जानते हैं और इसमें विशेषज्ञों की सहायता भी ली जा सकती है।
कुछ प्रजातियां जैसे चीड़ पहाड़ी मूल के पौधे नहीं हैं । चीड़ को व्यावसायिक कारणों से यहॉ रोपा गया था। चीड़ के सूखे नुकीले पत्ते पहाड़ों में आग भी फैलाते हैं। यह अन्य वनस्पति को भी उगने नहीं देता ।अतः हमें इसका विस्तार रोकना होगा।
प्रत्येक व्यक्ति इस यज्ञ का प्रवक्ता व माली बन जाये। हर गाँव में नर्सरी हो। घनी वनस्पति वाले स्थानों तथा पेड़ के नीचे उगे वे पौधे जो सरसब्ज नहीं हो पाते, उन्हें भी सावधानी से निकालकर , वृक्ष्य विहीन उचित स्थानों में रोपा जा सकता है। गॉंवों के वरिष्ठ जन व महिलाएं पौधरोपण अभियान का नेतृत्व संभालें।पहाड़ तभी हरा भरा होगा जब स्थानीय लोग इसका बीड़ा उठाएंगे। स्थानीय जनों को यह समझना होगा कि उनके गांव-घर से लगे पहाड़ उनके अपने हैं तथा उनके सुखी जीवन हेतु इन पहाड़ों का घनी वनस्पति-युक्त होना आवश्यक है। बन -आग आदि से पहाड़ो को बचाने हेतु भी पूरी तैयारी करनी होगी।
पौधरोपण में कुछ दिन पौधों की देखरेख व संरक्षण अति आवश्यक है। इसी प्रकार नगरीय क्षेत्रों में भी बड़े योजनाबद्ध व सूझबूझ से चयनित पौधे लगाए जाएं और यथासंभव जगह-जगह पार्क व उपवन विकसित हों।
आओ बढ़कर हाथ बाढाएं।
पौध लगाएं, वृक्ष्य बचाये । पुण्य कमाएँ।
लेखक – हीरा बल्लभ जोशी