उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बड़े पैमाने पर घातक हिम-चट्टान हिमस्खलन में 200 से अधिक लोगों की जान गई और बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ था। एक साल से थोड़ा अधिक समय बाद अब वैज्ञानिक आपदा के कारणों का पता लगाने में सफल रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि आपदा आने से पहले यह क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय था। उन्हें रॉक-आइस-पृथकता या अलगाव के पूर्ववर्ती संकेतों का उल्लेखनीय अनुक्रम भी मिला, जो कि स्व-संयोजन या स्व-संगठन के माध्यम से एक नई संरचना के गठन से पहले गतिशील न्यूक्लिएशन चरण कहलाता है।
हिमालय के ग्लेशियरों (हिमनद) के पीछे हटने और अस्थिर ढलानों के साथ संबंधित का पिघलना क्षेत्र में मॉनसून के दौरान बारिश या भूकंप के कारण भूस्खलन हो सकता है। इसके अलावा हिम, बर्फ और चट्टान के हिमस्खलन से दुनिया भर के पहाड़ी इलाकों में लोगों और बुनियादी ढांचे को खतरा हो सकता है। यही कारण है कि क्षेत्र में भूकंप के साथ-साथ ग्लेशियर की स्थिति की निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) अपनी स्थापना के बाद से इस तरह की आपदा के पीछे जिम्मेदार प्रक्रिया को समझने में सक्रिय रूप से लगा है और हिमालय के ग्लेशियरों के आसपास भूकंपीय स्टेशनों के घने नेटवर्क के साथ महत्वपूर्ण और अनपेक्षित गतिविधियों का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस प्रक्रिया के तहत उन्होंने 7 फरवरी 2021 को हुई आपदा के पीछे के कारणों का पता लगाने की भी कोशिश की है।
9 वैज्ञानिकों के समूह ने हिमस्खलन क्षेत्र की उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया और पाया कि यह पिछले 5 वर्षों से खड़ी ढाल के निशान को नियंत्रित करने वाले कमजोर कील (पच्चड़) के शिखर के पास दरारें और जोड़ की क्रमिक वृद्धि को दिखाता है। ये दरारें आगे खुलने लगीं और पच्चड़ की विफलता से शिखर के पास एक कमजोर क्षेत्र की क्रमिक उन्नति हुई। बड़ी संख्या में आइस-रॉक हिमस्खलन की शुरुआत को भूकंपीय पूर्ववर्ती के रूप में दर्ज किया गया, जो मुख्य पृथकता के होने से 2.30 घंटे पहले तक लगातार सक्रिय थे। गतिशील प्रवाह और संबंधित प्रभावों के वेग का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में साक्ष्य के साथ भूकंपीय संकेतों का विश्लेषण और सत्यापन किया। इस तरह के उच्च-गुणवत्ता वाले भूकंपीय डेटा ने पूर्ण कालक्रम संबंधी नतीजे को फिर से संगठित करने और मलबे के प्रवाह की प्रगति के लिए शुरुआत के बाद से प्रभावों का मूल्यांकन करने को स्वीकार किया। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।